शिमला मिर्च की खेती…पॉली हाउस एवं शेड नेट में भी सफल

शिमला दिखने में जितनी खूबसूरत होती है, उतनी ही पौष्टिकता से भरपूर भी, क्योंकि इसमें विटामिन सी, विटामिन ए और बीटा कैरोटीन भरा होता है। इसके अंदर बिल्कुल भी कैलोरी नहीं होती इसलिये यह खराब कोलेस्ट्रॉल को नहीं बढ़ाती। साथ ही यह वजन को स्थिर बनाये रखने के लिये भी योग्य है। शिमला मिर्च एक ऐसी सब्जी है जिसे सलाद या सब्जी के रूप में खाया जा सकता है। बाजार में शिमला मिर्च लाल, हरी या पीले रंग की मिलती है।

मिर्च की ही प्रजाति

आपको बता दें कि शिमला मिर्च, मिर्च की एक प्रजाति है। इसका व्यंजन सब्जी और आजकल नाश्ते में बहुतायत में प्रयोग किया जाता है। इसका अंग्रेजी नाम कैप्सिकम है, इसे पैपर भी कहा जाता है। तो आइए आज जानकारी लेते हैं शिमला मिर्च की खेती के बारे में…

जलवायु

शिमला मिर्च की खेती के लिए ज्यादा तापमान की जरूरत नहीं होती है। इसके लिए दिन में सामान्यत: 22 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड एवं रात के समय 16 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड उत्तम है। ज्यादा तापमान से फूल झडऩे लगते हैं एवं कम तापमान की वजह से परागकणों की जीवन उपयोगिता कम हो जाती है।

पॉली हाउस उत्तम

तापमान की कम या ज्यादा उपलब्धता के चलते शिमला मिर्च की खेती प्रभावित हो जाती है, इसलिए सामान्यत: शिमला मिर्च की संरक्षित खेती पॉली हाउस में कीटरोधी एवं शेड नेट लगाकर सफलतापूर्वक कर सकते हैं। पॉलीहाउस की खेती के लिए सामान्यत: ऐसी फसलों का चयन किया जाता है। जिनका आयतन कम हो एवं अधिक मूल्यवान हो जैसे खीरा, टमाटर, शिमला मिर्च इत्यादि।

मिट्टी

वैसे तो शिमला मिर्च की खेती किसी भी प्रकार की मिट्टी में की जाती है, लेकिन ज्यादा और अच्छे उत्पादन के लिए शिमला मिर्च की खेती सामान्यत: बलुई दोमट मृदा में की जाती है। लेकिन ध्यान रखें मिट्टी में अधिक मात्रा में कार्बनिक पदार्थ मौजूद हो एवं जल निकासी अच्छी हो।

पौधरोपण

पौधरोपण से पहले खेत की तैयारी अच्छे से कर लेनी चाहिए। खेत को 5-6 बार जुताई कर तैयार किया जाता है। गोबर की खाद या कम्पोस्ट अंतिम जुताई के पूर्व खेत में अच्छी तरह से खेत में मिला दिया जाना चाहिए। पौधों की रोपाई ड्रिप लाईन बिछाने के बाद 45 सेमी की दूरी पर करनी चाहिए।

रोपाई

शिमला मिर्च के पौधे 30 से 35 दिन में रोपाई योग्य हो जाते हैं। रोपाई के समय रोप की लम्बाई तकरीबन 16 से 20 सेमी एवं 4-6 पत्तियां होनी चाहिए। पौधों की रोपाई अच्छी तरह से उठी हुई तैयार क्यारियाँ में करनी चाहिए।

सिंचाई

शिमला मिर्च की सिंचाई मौसम को देखते हुए करनी चाहिए। गर्मी के मौसम में कम से कम 7 दिन में तो ठंडे मौसम में 10 से 12 दिन के अंतराल में सिंचाई करनी चाहिए। ड्रिप इरीगेशन की सुविधा उपलब्ध होने पर उर्वरक एवं सिंचाई (फर्टीगेशन) ड्रिप द्वारा ही करना चाहिए।

किस्में

शिमला मिर्च की प्रमुख किस्में कैलिफोर्निया वंडर, रायल वंडर, येलो वंडर, ग्रीन गोल्ड, भारत, अरका बसन्त, अरका गौरव, अरका मोहिनी, सिंजेटा इंडिया की इन्द्रा, बॉम्बी, लारियो एवं ओरोबेल आदि है।

खरपतवार

किसी भी फसल में खरपतवार नियंत्रण आवश्यक होता है। इसलिए शिमला मिर्च की अच्छी उपज के लिए 30 एवं 60 दिनों के बाद गुड़ाई करनी चाहिए।

शिमला मिर्च में कीट एवं रोग

शिमला मिर्च के कीटो में मुख्य तौर पर चेपा, सफेद मक्खी, थ्रिप्स, फल भेदक इल्ली एवं तम्बाकू की इल्ली लगती है। इसके साथ ही इसमेंं चूर्णी फफूंद, एन्थ्रेक्नोज, फ्यूजेरिया विल्ट, फल सडऩ एवं झुलसा का प्रकोप प्राय: देखा जाता है, इसलिए इसकी रोकथाम आवश्यक है।

शिमला मिर्च की खेती से कौशल हुआ मालामाल

कोतमा जनपदीय अंचल के रहने वाले कृषक कौशल के लिए शिमला मिर्च की खेती लाभ का धंधा बन गई है। किन्तु उन्हें इस स्थिति में पहुंचाने में उद्यानिकी विभाग की ड्रिप सिस्टम योजना की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है।

कौशल को उद्यानिकी फसलों के विस्तार के लिए उद्यानिकी विभाग द्वारा वर्ष 2016-17 में एक हेक्टेयर रकबे में ड्रिप सिस्टम का लाभ दिया गया था। इसके बाद उन्हें विभाग से पावर ट्रिलर, पावर बिडर एवं पावर स्प्रे पम्प योजना का लाभ भी दिया गया। नतीजतन ड्रिप पद्धति की सुविधा की बदौलत कौशल उद्यानिकी फसलों की खेती से भरपूर कमाई करने लगे।

कौशल ने उद्यानिकी विभाग की मदद से मसाला क्षेत्र विस्तार योजना के तहत जुलाई-अगस्त माह में ड्रिप पद्धति से शिमला मिर्च की खेती करके भरपूर उत्पादन प्राप्त किया। इसकी स्थानीय बाजार में बिक्री से अच्छी आय प्राप्त हो रही है। इसकी खेती पर कुल 30-40 हजार रुपये की लागत आई थी। लेकिन कौशल को इसके उत्पादन से सवा लाख रुपये की आय होने का अनुमान है। कौशल बताते हैं कि ड्रिप पद्धति की सहायता से उगाई गई उद्यानिकी फसलों की कमाई से उन्हें भरपूर लाभ प्राप्त हो रहा है। इस कड़ी में शिमला मिर्च के उत्पादन से 85 हजार रुपये का शुद्ध मुनाफा प्राप्त होने का अनुमान है।

सहायक संचालक उद्यानिकी बी.डी. नायर ने बताया कि अनूपपुर जिले में उद्यानिकी फसलों के जरिए किसानों की आमदनी बढ़ाने के लगातार प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए उन्हें संसाधन भी उपलब्ध कराए जा रहे हैं।