कोरोना काल में लॉकडाउन के कारण तमाम लोगों के सामने आजीविका चलाने का संकट खड़ा हो गया था। लेकिन अनूपपुर जिले के ग्राम धरहरकला की मजदूर वर्ग से तालुल्कात रखने वाली कई महिलाओं ने अपनी सूझबूझ से सब्जियों की बिक्री से इस प्राकृतिक आपदा का डटकर मुकाबला किया और आजीविका की गाड़ी को डगमगाने नहीं दिया।

प्राकृतिक आपदा के संकट के समय में इन महिलाओं ने अपनी बाड़ी में फूलगोभी, पत्ता गोभी, टमाटर, भाटा, पालक, मेथी जैसी कई सब्जियों को उगाया। इन सब्जियों को ना सिर्फ घर में खाने के काम में लाया, बल्कि इनकी बिक्री से हुई कमाई से घर का खर्च भी चलाया। नतीजतन संकट के समय इन्हें परिवार की आजीविका चलाने में कठिनाई नहीं हुई। खास बात यह है कि इन महिलाओं ने सब्जी उगाने में जैविक खाद का इस्तेमाल किया, जिससे गुणवत्ता के साथ-साथ फसल का उत्पादन कई गुना बढ़ गया।

सब्जी उत्पादक ये महिलाएं आज भी जैविक खाद का इस्तेमाल कर तरह-तरह की हरी सब्जियां उगाकर फसल का भरपूर उत्पादन ले रही हैं। सब्जियों के रूप में उन्हें घर में खाने के लिए पौष्टिक आहार भी मिल रहा है और इनकी बिक्री से कमाई भी हो रही है। लेकिन इन महिलाओं को इस मुकाम तक पहुंचाने में म.प्र. राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन एवं शासन वित्त पोषित सृजन संस्था का भी कम योगदान नहीं है। म.प्र. ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा गठित महिला स्वसहायता समूहों में से सृजन संस्था ने चार महिला सब्जी उत्पादक समूहों का गठन किया।

    इस संस्था ने इन समूहों में साठ महिलाओं को जोड़कर उन्हें जैविक खेती के लिए प्रेरित किया। उन्हें न केवल जैविक खेती का प्रशिक्षण दिलवाया, बल्कि भिन्न-भिन्न प्रकार की सब्जियों के नि:शुल्क बीज भी दिलवाए। इस तरह बाडिय़ों में सब्जी उगाने का सिलसिला शुरु हुआ। प्रशिक्षण पाकर ये महिलाएं घर पर ही कीटनाशक एवं जैविक खाद खुद ही तैयार कर लेती हैं। जैविक खेती में उपयोग होने वाले विभिन्न प्रकार के उपकरण भी सृजन ने महिला समूहों को उपलब्ध कराए हैं।

    सब्जी उत्पादक समूह से जुड़कर इन महिलाओं ने जैविक खेती को अपना लिया है। जैविक खेती से होने वाले फायदों को इन महिलाओं ने समझ लिया है और अब ये रासायनिक खेती से होने वाले दुष्प्रभाव से बच रही हैं। इनसे प्रेरित होकर गांव के अन्य परिवारों का भी जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ रहा है। जैविक खेती से उत्साहित समूह से जुड़ी सावित्री कहती हैं कि जैविक खाद से उगाई गई सब्जियों की बदौलत उनके परिवार को खाने को पौष्टिक आहार मिल रहा है। साथ ही इनकी कमाई से घर का खर्च चलाने में मदद मिल रही है। समूह की एक और महिला सदस्य का कहना है कि जैविक खेती की फसल उनके लिए लाभदायक सिद्ध हो रही है। सृजन के मिशन टीम लीडर आशीष त्रिपाठी ने बताया कि पिछड़े क्षेत्रों में संसाधन उपलब्ध कराने के फलस्वरूप महिला स्वसहायता समूहों का जैविक खेती की ओर रुझान बढ़ रहा है। इससे उन्हें पोषण आहार के साथ-साथ आमदनी भी प्राप्त हो रही है।