ब्लैक राईस
ब्लैक राईस

कोरबा जिले के करतला और कोरबा विकासखण्ड के करीब 30 गांव के किसान परंपरागत धान को छोड़कर काले धान (ब्लैक राईस) की खेती कर रहे हैं। औषधीय गुणों के कारण किसानों की यह उपज हाथों-हाथ बिक रही है। पश्चिम बंगाल से लेकर तमिलनाडु और केरल तक की बड़ी ट्रेडिंग कंपनियां इस राईस के लिए किसानों से संपर्क कर रही हैं। लोकल मार्केट में भले ही इस चांवल की कीमत 150 से 200 रूपए किलो हो परंतु कई ट्रेडिंग कंपनियों के माध्यम से अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे अंतर्राष्ट्रीय ऑनलाइन मार्केट प्लेटफॉर्म पर यह साढ़े चार सौ से साढ़े पांच सौ रूपए किलो बिक रहा है। दो साल पहले सिर्फ करतला विकासखण्ड में नौ गांवो में किसानों ने 22 एकड़ में ब्लैक राईस की खेती शुरू की थी। ब्लैक राईस से फायदे को देखते हुए जिले के दो विकासखण्डों कोरबा और करतला के लगभग 30 गांवो में अब सवा दो सौ एकड़ रकबे में ब्लैक राईस की फसल लगी है। इस बार रबी मौसम में किसानों की 100 एकड़ में रेड राईस लगाने की भी योजना है। इस साल चालू खरीफ मौसम में करतला में 170 एकड़ में और कोरबा में 55 एकड़ रकबे में काले धान की खेती की जा रही है। पिछले वर्ष खरीफ और रबी मौसम को मिलाकर कुल 166 एकड़ में ब्लैक राईस और सात एकड़ में रेड राईस की खेती की गई थी जिससे लगभग डेढ़ हजार क्विंटल ब्लैक राईस और 70 क्विंटल रेड राईस का उत्पादन हुआ था।

छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रदेश के किसानों को अधिक से अधिक लाभ पहुंचाने और खेती को लाभ का व्यवसाय बनाने के लिए कई सरकारी योजनाएं शुरू की हैं। धान की परंपरागत खेती के स्थान पर अन्य लाभकारी फसलों की खेती भी उनमें से एक है। कोरबा के करतला विकासखण्ड में परंपरागत धान की खेती की जगह ज्यादा दामों पर बिकने वाले ब्लैक राईस की खेती दो साल से की जा रही है। शुरूआत में किसानों ने लगभग 22 एकड़ रकबे में ब्लैक राईस लगाया था और उससे लगभग ढाई सौ क्विंटल उत्पादन मिला था। किसानों का यह उत्पाद हाथों-हाथ बिक गया था। राज्य सरकार के साथ-साथ इस फायदेमंद खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहन और मदद नाबार्ड से भी मिली है, साथ ही समाज सेवी संस्था बुखरी गांव विकास शिक्षण समिति भी किसानों को इसके लिए जरूरी प्रशिक्षण और मार्केटिंग के लिए मदद कर रही है।

            ब्लैक और रेड राईस के खेती के प्रति क्षेत्र के किसान काफी उत्साहित हैं। इस बार सवा 200 एकड़ में लगी फसल से लगभग दो हजार क्विंटल ब्लैक राईस का उत्पादन होने की संभावना है। किसानों की इस उपज की प्रोसेसिंग के लिए शासन द्वारा आर्थिक सहायता उपलब्ध कराकर नवापारा में मिनी प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है। इसके लिए किसानों की सहकारी समिति भी बनाई गई है। समिति के अध्यक्ष सूर्यकांत सोलखे ने बताया कि परंपरागत धान की खेती को छोड़कर फायदा देने वाली ब्लैक राईस की खेती के लिए किसानों को श्री पद्धति सहित खेती के उन्नत तरीकों की ट्रेनिंग दी गई है। उपज की प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और मार्केटिंग के लिए नाबार्ड द्वारा सहयोग किया जा रहा है। किसान अपनी ब्लैक राईस की उपज को देश-विदेश की बड़ी एक्पोर्ट कंपनियों को बेच रहे हैं। कोलकाता की कंपनियों के साथ दक्षिण भारत की कई बड़ी कंपनियां इसके लिए संपर्क में है। किसानों को इस ब्लैक राईस से प्रतिकिलो 100 रूपए से अधिक का फायदा मिल रहा है।

औषधीय गुण होने के कारण विदेशों में भी ब्लैक राईस की खासी मांग है। दुबई, इंडोनेशिया सहित ऑस्ट्रेलिया और यूरोप के देशों में भी इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। डायबटीज, हृदय रोगी सहित मोटापा और पेट संबंधी बीमारियों से ग्रसित लोगों को डॉक्टर इस चांवल को खाने की सलाह दे रहे हैं। एंटी ऑक्सीडेंट तत्वों की अधिकता, भरपूर फाइबर और कोलेस्ट्रॉल स्तर को नियंत्रित रखने के साथ-साथ कोरोना के बाद रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में भी यह चांवल फायदेमंद है। इससे बिस्किट भी बनाई जा सकती है। सभी तरह से स्वास्थ्यवर्धक और लाभकारी होने के कारण इस चांवल की महानगरों में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मांग तेजी से बढ़ रही है।