छत्तीसगढ़ सरकार के प्रोत्साहन के चलते गौठानों में महिला समूहों द्वारा बड़ी मात्रा में वर्मी कम्पोस्ट का उत्पादन किया जा रहा है। समूहों द्वारा गौठानों में उत्पादित वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग शासकीय नर्सरियों, पौधरोपण के साथ ही अब रेशम उत्पादन में उपयोगी पौधों के पोषण के लिए होने लगा है।

कोरबा जिले की सभी सरकारी नर्सरियों में विभिन्न प्रजातियों के फलदार पौधों को गौठानों में बनी कम्पोस्ट खाद से पोषण मिलने लगा है। वन विभाग द्वारा कराये जार हे वृक्षारोपण के साथ ही रेशम कीट को जीवित रखने के लिए लगाए जाने वाले पौधों के लिए  भी वर्मी कम्पोस्ट का उपयोग किया जाने लगा है। जिले के 74 गौठानों में अभी कम्पोस्ट खाद बनाने का काम जारी है। गौठानों में बनी इस खाद को उद्यानिकी, वन, कृषि के साथ-साथ रेशम विभाग भी खरीद रहा है। नगरीय निकायों में वृक्षारोपण और पार्कों के पौधों के संपोषण के लिए भी इसी वर्मी खाद का उपयोग किया जा रहा है। खास बात यह है कि कम्पोस्ट खाद कहीं बाहर से नहीं मंगाई गई है, बल्कि इसका उत्पादन छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गांव में स्थापित गोठानों में हुआ है। जरूरत के अनुसार शासकीय विभाग अब बीज निगम से जैविक खाद की खरीदी करने के बजाए स्थानीय स्तर पर ही महिला स्वसहायता समूहों से वर्मी खाद की खरीदी करने लगे हैं।

गोठानों की कम्पोस्ट खाद में एक ओर जहां जिले की नर्सरियों को हरियाली से भर दिया है, तो वहीं दूसरी वर्मी खाद तैयार करने में जुटी महिला स्वसहायता समूहों को उत्साह से भर दिया है। जिले में कम्पोस्ट खाद बनाने का काम 74 गोठानों में 74 महिला स्वसहायता समूहों द्वारा पिछले एक साल से लगातार किया जा रहा है। समूह की महिलाओं ने इन गोठानों में 309 वर्मी बेडों में एक हजार 497 क्विंटल वर्मी खाद उत्पादित किया है। इस खाद को स्थानीय स्तर पर किसानों के साथ-साथ वन विभाग, कृषि विभाग, उद्यानिकी विभाग, रेशम विभाग ने भी अपनी शासकीय योजनाओं के क्रियान्वयन में उपयोग के लिए खरीदा है। जिले की वर्मी कम्पोस्ट का प्रमाणीकरण संस्था द्वारा गुणवत्ता प्रमाणन भी किया जा चुका है। महिला समूहों ने इस कम्पोस्ट खाद का रेट नौ रूपये साठ पैसे प्रतिकिलो तय किया है। इस हिसाब से महिलाओं ने अब तक 14 लाख 37 हजार रूपये से अधिक का कम्पोस्ट खाद बना लिया है। इसमें से महिलाओं ने लगभग एक हजार 70 क्विंटल खाद की बिक्री कर दी है। जिससे उन्हें 10 लाख 27 हजार रूपये से अधिक की आमदनी हुई है। अभी महिलाओं के पास लगभग चार लाख रूपये से अधिक की 430 क्विंटल कम्पोस्ट खाद बची है। इसके साथ ही खाली हुए वर्मी बेडों को फिर से भर दिया गया है। जिनसे आने वाले 15 दिनों में लगभग सा?े पांच सौ क्विंटल और खाद बन जायेगी।

कोरबा विकासखंड के बासीन गांव में बने गोठान का संचालन करने वाले उजाला स्व सहायता समूह की अध्यक्ष सितारा बेगम कहती है कि गौठान में गोबर-कचरे से खाद बनाने लागत कम है। 40-45 दिन में खाद तैयार हो जाती है। उसे निकालकर, छानकर पैकिंग करते हैं, फिर नौ रूपये साठ पैसे किलो में बेचते हैं। कचरे की सफाई के साथ-साथ कम समय में ही अच्छी-खासी कमाई भी हो जाती है। समूह की सचिव मीरा बाई बताती हैं कि महिला समूह द्वारा गोठानों में उपलब्ध गोबर और पेड़-पौधों के पत्तों तथा वानस्पतिक कचरे को वर्मी बेड में भरकर खाद तैयार किया जाता है। वर्मी बेड में भरे कचरे में केचुए डालकर उसे जैविक खाद में बदल दिया जाता है। इसमें किसी कैमिकल का उपयोग नहीं होता। ऐसी जेैविक खाद सब्जियों के साथ-साथ फलों और अन्य फसलों के लिए भी उपयोगी होती है। जिले में महिला समूहों द्वारा बनाई गई इस खाद की दिन प्रतिदिन मांग बढ़ती जा रही हैं।