मनेन्द्रगढ़ के ताराबहरा ग्राम पंचायत में विरल वनों के बीच वनवासी परिवारों की संयुक्त भूमि अब फलोद्यान के साथ सब्जियों की व्यवस्थित खेती का एक अनुकरणीय उदाहरण बन चुकी है। पांच आदिवासी किसान परिवारों की मेहनत को महात्मा गांधी नरेगा का साथ मिलने से इस भूमि का अब स्वरूप ही बदल गया है। अपने परंपरागत खेती के काम में जी-जान से जुटे इन किसानों के चेहरे पर अब तसल्ली की मुस्कान है। फलोद्यान के बीच लगाई गई बैगन की फसल के बीच मुस्कुराते हुए किसान राम सिंह और तोषकुमार बताते हैं कि एक साल में ही सब कुछ बदल गया है। खेती भी और खेती करने का तरीका भी। अपने पिता भीम सिंह के वृद्ध हो जाने से खेतीे सम्हालने वाले श्री तोष कुमार बतलाते हैं कि यहां की पूरी जमीन लगभग 19 एकड़ के आसपास है वह पूरी की पूरी बंजर ही पड़ी रहती थी। ऐसा ही हाल मनोहर सिंह, राम सिंह, थान सिंह और अजमेर सिंह के भी पड़त भूमि का था।

सामूहिक कृषि के सुझाव के साथ ही महात्मा गांधी नरेगा के अधिकारियों ने इन किसानों को गांव में रिक्त भूमि पर फलोद्यान तैयार करने के लिए सहयोग दिए जाने के बारे में अवगत कराया। ताराबहरा के किसानों के समूह ने इस सुझाव को ही अपना रास्ता बनाया। अपनी जमीन में फलोद्यान तैयार करने के लिए मनेाहर सिंह ने तीन एकड़ भूमि, राम सिंह और उनके भाइयों पृथ्वी सिंह और लोलर सिंह ने मिलकर पांच एकड़ भूमि, भीम सिंह ने लगभग दो एकड भूमि और थान सिंह, अजमेर सिंह ने भी अपनी भूमि पर फलोद्यान की सहमति दी। इस तरह से कुल 12 एकड़ भूमि पर सामूहिक फलोद्यान के साथ अंतर्वर्तीय सब्जी उत्पादन का कार्य शुरू किया गया।

कोरिया कृषि विज्ञान केंद्र के मार्गदर्शन में टपक सिंचाई योजना के तहत सिंचाई की व्यवस्था करते हुए यहां उन्नत किस्म के नींबू, आम, अमरूद, सीताफल आदि के लगभग 2500 पौधे लगाए गए। साथ ही यहां 440 गढ्ढों में शकरकंद की पौध लगाई गई और बाड़ी के किनारे शतावर जैसे मूल्यवान औषधीय पौध की खेती की गई है। इन पौधों की देखरेख के लिए भी इन परिवारों को मजदूरी की राशि मिलने लगी और साथ ही सब्जी की खेती बड़े स्तर पर करने से इन्हे फलोद्यान तैयार होने के पूर्व ही बैगन जैसी सब्जी की खेती से ही 18 हजार रूपए तक का लाभ हो चुका है। इसके अलावा इन परिवारों को पौध तैयारी कार्य से 85 हजार रूपए का अतिरिक्त लाभ हो चुका है।

यही नहीं इन किसान परिवारों को शकरकंद की खेती से 35 हजार रूपए तक का लाभ हो चुका है और आने वाले समय में शकरकंद की खेेती से 1 लाख 20 हजार रूपए का लाभ होगा। इस तरह बंजर पड़ी वनवासियों की भूमि में महात्मा गांधी नरेगा के पड़त भूमि विकास कार्य ने सब कुछ बदल कर रख दिया है। ये किसान परिवार अब शासन की मदद से स्वयं की उन्नति की राह बना रहे हैं।