पोषक पत्तों से भरपूर नाशपत्ती एक स्वादिष्ट फल है। इसकी खेती पर्वतीय क्षेत्रों के साथ-साथ घाटी, तराई और भावर वाले क्षेत्रों में भी की जाती है। भारत में प्रमुख रूप से इसकी खेती हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश  के साथ ही कम सर्दी वाली किस्मों की खेती उप-उष्ण क्षेत्रों में की जाती है। नाशपत्ती के एक वृक्ष से 1 से 2 क्विटंल तक फल प्राप्त हो जाते हैं। वहीं प्रति हैक्टर क्षेत्र से 500 से 700 क्विंटल फल प्राप्त हो सकते हैं, जिससे अच्छी आमदनी हो जाती है। तो आज हम बताते हैं नाशपत्ती की खेती के साथ-साथ उसके व्यापारिक लाभ के बारे में-

जलवायु

नाशपत्ती की खेती गर्म आर्द्र उपोष्ण मैदानी क्षेत्रों से लेकर शुष्क शीतोष्ण ऊँचाई वाले क्षेत्रों यानी पर्वतीय क्षेत्रों में आसानी से की जा सकती है। लेकिन ध्यान रखें कि सर्दी में पाले और कोहरे से इसकी फूलों को बहुत ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसलिए जलवायु में इस बात का खास ध्यान रखने की आवश्यकता होती है।

मिट्टी

नाशपत्ती की खेती के लिए बलुई दोमट काफी उपयुक्त मानी जाती है। लेकिन क्योंकि एक पर्णपाती फल है, इसलिए जल निकासी की इसमें व्यवस्था अच्छी होनी चाहिए।

पौधरोपण एवं सिंचाई

नाशपत्ती के पौधे प्राय: कलम करके तैयार किये जाते हैं। लेकिन अत्यधिक अंकुरण के लिए कैन्थ के बीजों को 45 दिनों तक बहुत ही कम तापमान यानी 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर नमी वाले रेत में स्तरित भी किया जा सकता है। इसके साथ ही पौधरोपण के समय सामान्य पौधों को 5-5 मीटर की दूरी तथा कलम के लिए 3-3 मीटर की दूरी रखना आवश्यक है। वहीं ढलानदार और समतल घाटियों वाले क्षेत्रों में वर्गाकार, षट्कोणाकार, आयताकार विधि से लगाय जा सकते हैं। नाशपाती को एक साल में  75 से 100 सेंटीमीटर वितरित बारिश की आवश्यकता होती है। इसलिए रोपाई के बाद नियमित सिंचाई जरूरी है। गर्मियों में 7 दिन तथा सर्दियों में 15 दिनों के अंतराल पर सिंचाई करना आवश्यक है।

खाद

नाशपत्ती के पौधों पर सेब की ही उर्वरक तथा खाद डाली जाती है।

नाशपत्ती की किस्में

वैसे तो नाशपत्ती की कई प्रकार की किस्में बाजार में प्रचलित हैं। फिर इसमें मिट्टी के अनुसार पर्याप्त उर्वरा का उपयोग करते हुए इसकी खेती की जा सकती है। नाशपत्ती की प्रमुख किस्मों में अर्ली चाईना, लेक्सटन सुपर्ब, थम्ब पियर, शिनसुई, कोसुई, सीनसेकी आदि हैं। इसके अलावा आदिम किस्में बारटलैट, रैड बारटलैट, मैक्स-रैड बारटलैट, कलैप्स फेवरट और पछेती किस्मे कान्फ्रेन्स (परागण), डायने डयूकोमिस, काश्मीरी नाशपाती आदि हैं। इसमें कम किस्में बहुत जल्द ही तैयार हो जाती हैं और कई किस्मों में देर से फल लगते हैं। इसलिए किस्मों का खास ध्यान रखना होगा। लेकिन आपको बता दें कि जून के अन्तिम सप्ताह से मध्यम जुलाई तक पकने वाली किस्म व्यापारिक स्तर पर अधिक लाभदायक है।

कीट नियंत्रण

वैसे तो हर पौधों पर कीटों का नियंत्रण होता रहता है। इसलिए किसान समय-समय पर इसके उपचार भी करते रहते हैं। नाशपत्ती में लगने वाले कीटों पर नियंत्रण आवश्यक है। इसमें खरपतवार प्रमुख है। इसलिए इसकी रोकथाम के लिए ग्लाइफोसेट 1.2 लीटर और पैराकुएट 1.2 को 200 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ में छिड़काव करें। इसके अलावा इसमें सेब की भांति ही सैंजो स्केल नामक रेंगने वाला कीट लगता है। इससे प्रकोप से पौधों की छाल पर भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं। इसकी रोकथाम के लिए क्लोरपाइरीफॉस 0.04 प्रतिशत, 400 मिलीलीटर 20 ईसी का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। वहीं व्हाईट स्केल बीमों तथा फलों पर दलपुंज में देखा जाता है। इसकी के लिए फल तोडऩे के बाद क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव उचित मात्रा में जरूरी है। वहीं नाशपत्ती में चेपा और थ्रिप्स नामक कीट भी लगते हैं, जो पत्तों का रस चूस लेते हैं। इसके प्रभाव से पत्ते पीले रंग के दिखाई पड़ते हैं। वहीं नाशप्ती में जड़ गलन की बीमारी भी लगती है। इसके फलस्वरूप पौधे की छाल तथा लकड़ी भूरे रंग की हो जाती है। इसकी रोकथाम के लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिला कर मार्च महीने में छिड़काव करें तथा जून में दोबारा छिड़काव करें।

तुड़ाई

नाशपत्ती के फलों की तुड़ाई जून के प्रथम सप्ताह से सितम्बर के मध्य तक की जाती है। नाशपत्ती रसेदार, कुरकुरे, स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इसमें पौष्टिक तत्वों की मात्रा भी काफी होती है। इसलिए इसकी बाजार में काफी मांग होती है। इसलिए इसकी खेती काफी फायदेमंद है।

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