जुकिनी को चप्पन कद्दू भी कहा जाता है। इसकी खेती विदेशों में ज्यादा की जाती है। लेकिन अब इसकी मांग को देखते हुए भारत के कुछ हिस्सों में भी इसे उगाया जाने लगा है। इसके पौधे झाडिय़ों के जैसे होते है। इसकी ऊंचाई अधिकतम 1.5 से 3 फीट होती है। यह फाइबर और न्यूट्रिशंस से भरी हुई सब्जी होती है। इसे खाने से आंखों की परेशानी, उम्र के कारण होनेवाले दाग-धब्बे में, हड्डियों को मजबूत करने में, बीपी नियंत्रित में, ब्लड फ्लो बनाए रखने और टाइप-2 डायबीटीज में, पाचन आदि में मदद करती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं जुकिनी की खेती के बारे में….

जलवायु
जुकिनी गर्म जलवायु की फसल है। इसलिए इसकी खेती ज्यादा तापमान वाले क्षेत्रों में की जाती है। जहां तापमान 20 से 40 डिग्री सेल्सियस होती है, वहां इसकी खेती आसानी से की जा सकती है। ध्यान रखें जुकिनी की फसल ज्यादा ठंड और पाला सहन नहीं कर सकती है। इसका ध्यान अवश्य रखें।

मिट्टी
इसकी खेती के लिए वैसे तो ज्यादा पोषक तत्वों वाले मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है, फिर भी अच्छी और उपजाऊ मिट्टी में इसकी खेती की जाए तो उपज अच्छी मिलती है। साथ ही दोमट मिट्टी, जिसका पीएच मान 6.5 के आसपास हो तो जुकिनी की खेती सर्वोत्तम होती है।

मिट्टी जांच
जुकिनी की खेती के पहले मिट्टी की जांच अवश्य करा लें। क्योंकि मिट्टी जांच के साथ ही आपको यह ज्ञात हो जाएगा कि जुकिनी खेती कैसे मिट्टी में की जा सकती है और यदि मिट्टी की जांच की जाए तो फसल अच्छी जरूर होगी।

किस्में
ज़ुकिनी की किस्मों में ऑस्ट्रेलियन ग्रीन 4-5, अर्ली यलो प्रोलीफिक, पूसा पसंद, पैटीपैन आदि हैं।

खेत की तैयारी
जुकिनी की खेती के लिए खेत में अच्छी जुताई कर लेनी चाहिए। 3 से 4 बार जुताई करने से भूमि इसकी खेती के लिए अच्छी होती है।

मात्रा
जुकिनी की खेती के लिए एक हेक्टेयर में 7 से 8 किलो बीज पर्याप्त होता है।

सिंचाई
जुकिनी की बोआई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर लें। चूंकि यह ग्रीष्मकालीन फसल है, इसलिए हर हफ्ते इसे सिंचाई की जरूरत पड़ती है। और यदि आप दूसरे मौसम में इसकी खेती करना चाहते हैं तो पाले से जरूर बचाएं।

उर्वरक
इसकी अच्छी फसल के लिए इसमें प्रति हेक्टेयर 20-25 टन सड़ी गोबर की खाद या कम्पोस्ट, और प्रति हेक्टेयर 100 किलो नाइट्रोजन, 60 किलो फास्फोरस और पोटाश लें।

उपज
बीज रोपण के दो महीने के अंदर ही इसमें फल आने लगते हैं। जिसका बाजार में अच्छा दाम मिलता है।