चुंकदर यानी बिट का मुख्य उपयोग मुख्यत: सलाद और जूस में किया जाता है। चुकंदर में शर्करा, प्रोटीन, मैग्नीशियम, कैल्सियम, पोटेशियम, फास्फोरस, आयोडीन, आयरन, मैगनीज, विटामिन सी, बी-1 तथा बी- 2 भरपूर मात्रा में पाया जाता है। यह रक्त की कमी दूर करने में काफी मददगार है। चुकंदर की बोआई का सबसे उपयुक्त समय अक्टूबर और नवंबर है।

चुकंदर ठंड के मौसम की फसल है। क्योंकि इसके लिए तापमान 10 से 20 डिग्री सेल्सियस आदर्श माना गया है। वहीं कहा जाता है कि तापमान बढऩे से इसकी जड़ों में चीनी की मात्रा बढ़ती जाती है। इसलिए पैदावार के समय जलवायु नियंत्रित होना आवश्यक है। चुकंदर की खेती हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन यदि बलुई या दोमट मिट्टी हो तो सबसे अच्छा है। वहीं आपको बता दें कि इसे लवणीय मिट्टी में भी आसानी से उगाया जा सकता है, बस मिट्टी का पीएच मान 6 और 8 के बीच हो। चूंकि चुकंदर जड़ों की फसल है। इसलिए खेत की तैयारी करते समय इस बात का अवश्य ध्यान देना चाहिए कि मिट्टी ज्यादा से ज्यादा भुरभुरी हो, इसलिए यदि मिट्टी रेतीली हो तो 3 जुताई, चिकनी हो तो 5 जुताई आवश्यक है। ताकि मिट्टी अच्छी तरह भुरभुरी हो जाए। फिर छोटी-छोटी क्यारियां बनाकर बीज की सीधी बुआई करें, लेकिन ध्यान रखें बीज बोते समय एक निश्चित अंतराल जरूर हो।

चुकंदर की प्रमुख किस्मों में डेट्रोइट डार्क रेड, क्रिमसन ग्लोब, अर्ली वंडर, क्रहसबे इजप्सियन और इन्दम रूबी क्वीन आदि हैं। चुकंदर की प्रति एकड़ कम से कम 3 हजार और अधिक से अधिक 5 हजार पौधे लगाए जा सकते हैं। लेकिन लाइन से लाइन की दूरी और पौधों से पौधों की दूरी का खास ख्याल रखें। चुकंदर में अधिक सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। पहली दो सिंचाई बुआई के 15 से 20 के अंतराल पर करें। उसके बाद 20 से 25 दिन के अंतर पर सिंचाई करते रहना पर्याप्त है।

चुकंदर में पत्ती काटने वाला कीड़ा आमतौर पर लगता है। जो पत्तियों को काट कर तने से अलग कर देता है। इसलिए इससे बचाव के लिए मेटासिस्टाक्स या मैलाथियान छिड़काव करें। वहीं पत्तियों में लगने वाले धब्बा रोग से बचाव के लिए फफूंद नाशक का छिड़काव करते रहना चाहिए। इसके अलावा चुकंदर की जड़ों में रूट रोग भी देखा गया है।
चुकंदर की खेती में उर्वरक की मात्रा मृदा परीक्षण के आधार पर आपको तय करनी है। इसके साथ ही एक एकड़ में कम से कम 13 क्विंटल के अनुमान से गोबर खाद अवश्य डालें। साथ ही सामान्यत: यूरिया 50 किलोग्राम, डी ए पी- 70 किलोग्राम और पोटाश 40 किलोग्राम प्रति एकड़ का प्रयोग करना चाहिए।