फूलों का हार हो या सजावट की बात, गेंदा फूल ही बहुतायत में दिखाई देते हैं। और इसकी खेती भी किसानों को मुनाफा ही मुनाफा देती है। एक बीघा में एक हजार से डेढ़ हजार रुपये की लागत लगती है। जबकी पैदावार 3 क्विंटल तक लिया जा सकता है। बाज़ार में इसकी क़ीमत 70 से 100 रुपए प्रति किलो है। तो चलिए आज हम बात करते हैं गेंदा फूल की व्यापारिक खेती के बारे में।

जलवायु : जलवायु की भिन्नता के अनुसार भारत में इसकी बुआई अलग-अलग समय पर होती है। उत्तर भारत में इसे दो समय पर बीज बोया जाता है पहली बार मार्च से जून तक और दूसरी बार अगस्त से सितम्बर। लेकिन शरद ऋतु में खेती के लिए उपयुक्त समय होता है। लेकिन ध्यान रखें कि गेंदा फूल पाले को सहन नहीं कर पाता है, इसलिए ऐसे क्षेत्रों में शरद ऋतु में इसकी खेती करने से बचना चाहिए। वहीं उत्तर भारत में मैदानी क्षेत्रो में इसे शरद ऋतु में तथा उत्तर भारत के ही पहाड़ी क्षेत्रो में गर्मियों में इसकी खेती की जाती है।

मिट्टी : गेंदा फूल की खेती के लिए बलुई दोमट मिट्टी काफी अच्छी होती है। इस मिट्टी में पौधे लगाने से उत्पादन भरपूर मिलता है, लेकिन ध्यान रखें कि मिट्टी का पीएच मान 7.0 से 7.5 के बीच होना चाहिए।

खेत की तैयारी : जब पौध शाला में पौधे तैयार हो जाएं यानी पौधे 7 से 10 सेंटीमीटर तक बड़े जाएं तो इसके खेतों क्यारियां बनाकर लगा देनी चाहिए।

मात्रा : गेंदा फूल के लिए चयनित किस्मों का चयन कर बीज लगाने चाहिए। यानी यदि संकर किस्मों के बीज का रोपण करना है तो 800 ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा सामान्य किस्मों को 1.5 किलो्राम प्रति हेक्टेयर की दर से रोपण करना चाहिए।
सिंचाई : यदि गेंदा फूल की खेती शरद ऋतु मे की जाती है, इसलिए इसमें ज्यादा सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन याद रखें की मिट्टी में नमी की मात्रा होना जरूरी है, नहीं तो फसल सूखने का खतरा रहता है। इसलिए इसकी सिंचाई हफ्त में दो से तीन बार अवश्य करें।

किस्में : गेंदा फूल की चार किस्मों की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। इसमें अफ्रीकन गेंदा, मैक्सन गेंदा, फ्रेंच गेंदा और संकर किस्म के गेंदा नगेटरेटा, सौफरेड, पूसा नारंगी गेंदा, पूसा बसन्ती गेंदा आदि शामिल हैं।

कीट नियंत्रण : गेंदा में मुख्य रूप से अद्र्धतन, खर्रा, विषाणु रोग तथा मृदु गलन रोग लगते हैं। इसलिए इसके उपचार के लिए लगातार उपाय करते रहना चाहिए, नहीं तो नुकसान हो सकता है। खर्रा रोग के नियंत्रण हेतु किसी भी फफूंदी नाशक का छिड़काव 15-20 दिनों के अंतराल पर करते रहें। वहीं गलन रोग के नियंत्रण लिए मिथायल ओ डिमेटान 2 मिली लीटर या डाई मिथोएट 10 मिली लीटर प्रति 10 लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करना चाहिए। वहीं कलिका भेदक, थ्रिप्स एवं पर्ण फुदका कीट के नियंत्रण के लिए फास्फोमिडान / डाइमेथोएट 0.05 प्रतिशत के घोल का छिड़काव 10 से 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन छिड़काव करना चाहिए।