अनार की खेती
अनार की खेती

 रसदार अनार की फायदेमंद खेती…

अपने पौष्टिक गुणों से भरपूर रसदार अनार हर किसी को पसंद आता है। अनार की खेती वैसे तो हमारे देश में महाराष्ट्र में बहुतायत में की जाती है। यहां इसके बड़े विशाल बगीचे देखे गए हैं। वहीं दूसरी ओर राजस्थान, उत्तरप्रदेश, आन्ध्रप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, कर्नाटक, गुजरात में भी अनार की खेती की जाती है। तो चलिए आज हम बात करते हैं अनार की खेती के बारे में…

  1. जलवायु
    अनार उपोष्ण जलवायु का पौधा है। ज्यादा समय तक उच्च तापमान में रहने से फलों की मिठास काफी अच्छी होती है।
  2. मृदा

वैसे तो अनार की खेती के लिए किसी विशेष प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होती है। इसे किसी भी प्रकार की मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। लेकिन यदि अच्छी फसल लेना चाहते हैं तो अनार की खेती रेतीली दोमट मिट्टी में करनी चाहिए। ताकि उच्च गुणवत्ता के साथ ज्यादा से ज्यादा उपज मिल सके।

  1. किस्में

अनार की कई किस्में बाजार में चलन में हैं। लेकिन मुख्यत: गणेश, ज्योति, मृदुला, भगवा, अरक्ता जैसे किस्में ज्यादा उपयुक्त होती है।

  1. खेती

अनार की खेती मुख्यत: दो प्रकार से की जाती है। पहली कलम द्वारा और दूसरी गुटी द्वारा। अनार का व्यावसायिक प्रर्वधन गूटीद्धारा किया जाता है।

  1. पौधरोपण

अनार के पौधों का रोपण सामान्यत: 4-5 मीटर की दूरी पर किया जाता है। पौध रोपण के एक माह पूर्व 60 गुणा 60 गुणा 60 सेमी. आकार के गड्ढे खोद कर 15 दिनों के लिए खुला छोड दें। तत्पश्चात गड्ढे की ऊपरी मिट्टी में आवश्यकतानुसार गोबर की खाद, सुपर फास्फेटस, क्लोरो पायरीफास चूर्ण मिट्टी में मिलाकर गड्डों को सतह से 15 सेमी. ऊचाई तक भर दे। इसके बाद सिंचाई करें, ताकि मिट्टी अच्छी तरह से जम जाए। इसके बाद पौधों का रोपण करें।

  1. सिंचाई

वैसे तो अनार के पौधों में सूखा सहने की शक्ति होती है। लेकिन यदि आपको अच्छा उत्पादन चाहिए तो सिंचाई अवश्य करनी चाहिए। वर्षा ऋतु के बाद फलों के अच्छे विकास हेतु नियमित सिंचाई 10-12 दिन के अन्तराल पर करना चाहिए। ड्रिप सिंचाई अनार के लिए उपयोगी साबित हुई है।

  1. उपज

अनार के पौधे रोपण के 2 से 3 साल के बाद ही फल देना शुरू कर देते हैं। लेकिन व्यावसायिक उत्पादन करना चाहते हैं तो रोपण के 4 साल बाद ही उपज लेनी चाहिए। कहा जाता है कि एक अच्छा विकसित पेड़ 60 से 80 नग अनार प्रतिवर्ष की उपज देता है और एक बार पेड़ लगने के बाद यह सिलसिला 10 से 15 साल तक चलता रहता है। जब फल पूर्ण रूप से पक जाये तभी पौधे से तोडऩा चाहिए। पौधों में फल सेट होने के बाद 120-130 दिन बाद तुड़ाई के तैयार हो जाते हैं। पके फल पीलापन लिए लाल हो जाते हैं। अनार की खेती

  1. कीट नियंत्रण

अनार की फसलों में मुख्यत: अनार की तितली, तना छेदक, माहू, मकड़ी, मिलीबग आदि का प्रकोप देखा गया है। अत: इसके प्रबंधन के लिए उपाय करते रहना चाहिए, अन्यथा फसल प्रभावित हो सकती है।

  1. रोग

अनार के पौधो में उकटा रोग का प्रकोप देखा गया है। इसके बचाव के लिए पूर्णत: प्रभावित पौधों को बगीचे से उखाड़कर जला दें। रोग के लक्षण दिखाई देते ही कार्बेन्डाजिम (50 डब्लू.पी.) 2 ग्राम/लीटर या ट्राईडिमोर्फ (80 ई.सी.) 1 मिली./लीटर पानी में घोलकर पौधों के नीचे की मृदा को तर कर दें।

फल फटना- अनार में फलों का फटना एक गंभीर समस्या है। यह समस्या शुष्क क्षेत्रों में अधिक तीव्र होती है। फटी हुए स्थान पर फल पर फफूँदो के आक्रमण के कारण जल्दी सड़ जाते है एवं बाजार भाव कम मिलते हैं। इससे बचाव के लिए नियमित रूप से सिचाई करते रहें। साथ ही जिब्रलिक एसिड़ (जी.ए.3) 15 पी.पी.एम. का छिड़काव करें। बोरान 0.2 प्रतिशत का छिड़काव करें।

  1. बाजार मूल्य

देखा गया है कि अनार जितना अच्छा पका होता है, उसके बाजार में उतने ही ऊंचे दाम मिलते हैं। इसलिए अनार की तोड़ाई करते समय इस बात का ध्यान अवश्य रखें कि फल अच्छे लाल और पके हुए हों तभी इसकी तोड़ाई करें। अनार का बाजार मूल्य काफी अच्छा होता है, क्योंकि अनार का जूस पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधि के रूप में भी उपयोग आता है।

अनार की खेती- मुनाफे की फसल

कृषक संजीव कुमार यादव ने अनार की खेती कर 2 लाख रूपये प्रति एकड़ सीधा मुनाफा प्राप्त किया है।  यह सब संभव हो सका है शासन की फलोद्यान विभाग द्वारा संचालित ड्रिप एवं सोलर पंप योजना एवं विभाग द्वारा दी गई तकनीकी सलाह से।

दतिया जिले की भाण्ड़ेर तहसील के ग्राम बेरछा निवासी कृषक श्री संजीव कुमार यादव पिता श्री भगवान सिंह यादव के पास 13.78 हैक्टेयर कुल भूमि है। जिसमें वह परम्परागत फसले लेते थे। लेकिन उद्यानिकी विभाग की तकनीकी सलाह एवं विभागीय योजनाओं का लाभ लेकर ड्रिप सिंचाई पद्धति एवं सोलर पंप का उपयोग कर डेढ हैक्टेयर क्षेत्र में उद्यानिकी फसल के रूप में अनार की खेती दो वर्ष पहले लेना शुरू किया। इसके साथ ही वह अंतरवर्तीय फसलो के रूप में धनिया, मैथी, टमाटर, मिर्ची, सफेद मूसली की फसलें भी ले रहे है। उन्होंने बताया कि अनार एवं अंतरवर्ती फसलों से उन्हें अब दो लाख रूपये प्रति एकड़ मान से आय हो रही है। जबकि परम्परागत फसलों से उन्हें इतना लाभ नहीं हो पाता था। श्री संजीव कुमार ने बताया कि उद्यानिकी विभाग से ड्रिप सिंचाई योजना एवं सोलर पंप हेतु प्रथम वर्ष में उन्हें 50 हजार 400 रूपये और द्धितीय वर्ष में 16 हजार की सहायता का लाभ मिला है। उन्होंने बताया कि आज उनका परिवार बेहतर तरीके से अपना जीवन निर्वहन कर रह है। श्री संजीव ने बताया कि उनके द्वारा पैदा किए जा रहे अनार उत्तर प्रदेश के कानपुर, झांसी एवं अन्य स्थानों पर भी विक्रय हो रहा है।