मध्य प्रदेश राज्य में उज्जैन सोयाबीन उत्पादन का एक प्रमुख केन्द्र है। यहां औसतन पांच लाख हेक्टेयर में 1430 किलो प्रति हेक्टेयर के मान से सोयाबीन का उत्पादन हो रहा है। पिछले 40 सालों से भी अधिक समय से उज्जैन में सोयाबीन का उत्पादन हो रहा है, लेकिन इसका घरेलु उपयोग नहीं होने से इसकी कीमतों का निर्धारण अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों से होता है तथा कई बार कृषकों को उचित आर्थिक लाभ प्राप्त नहीं होता।
लेकिन उज्जैन के प्रगतिशील किसान निहालसिंह ने इस परम्परा को तोड़ते हुए लीक से हटकर चलते हुए एक नवाचार किया है। शहर के समीप चिन्तामन जवासिया में रहने वाले किसान निहालसिंह सोयाबीन की एक नई प्रजाति जिसे ‘सब्जीवाली सोयाबीनÓ के नाम से जाना जाता है, इस अधिक आय और पोषण से भरपूर वाली सोयाबीन का व्यावसायिक उत्पादन पिछले चार वर्षों से कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि कृषि विज्ञान केन्द्र उज्जैन द्वारा वर्ष 2015-16 में सोयाबीन की यह नई प्रजाति जिसे विदेशों में ‘इडामाÓ कहा जाता है, कृषकों के बीच पहुंचाई गई थी। सोयाबीन की यह किस्म प्रति हेक्टेयर हरी फली 50 से 65 क्विंटल तथा बीज 15 से 17 क्विंटल उत्पादन देती है। इसका उपयोग सब्जी के रूप में तथा अन्य व्यंजन जैसे पकौड़े, पराठे आदि में भी किया जा सकता है। यह विशेष रूप से बरसात के मौसम में ग्रामीण क्षेत्रों में उपयुक्त है जब सब्जियों की उपलब्धता कम होती है तथा इसे प्रोटीन के एक बेहतरीन विकल्प के रूप में अपनाया जा सकता है।
इस सब्जी वाली सोयाबीन की यह विशेषता है कि इसमें सामान्य सोयाबीन की अपेक्षा कम मात्रा में प्रोटीन (12 प्रतिशत), कार्बोहाइड्रेट (13.1 प्रतिशत) और वसा (मात्र 3.6 प्रतिशत) होता है, जो शीघ्र पच जाती है, जबकि सामान्य सोयाबीन में 40 प्रतिशत प्रोटीन और 20 प्रतिशत वसा होती है, जिसे हमारा पाचन-तंत्र ठीक से नहीं पचा पाता और इसमें एक विशिष्ट गंध आती है तो अरूचिकर होती है। सब्जीवाली सोयाबीन में इसके अलावा कैल्शियम, लोहा, सोडियम और विटामीन ‘ए’ तथा ‘सी’ की प्रचुर मात्रा है, जो कुपोषण दूर करने में सहायक है।
उज्जैन के प्रगतिशील कृषक निहालसिंह की इस उपलब्धि पर उन्हें कई प्रमाण-पत्र दिये जा चुके हैं। प्रशासन द्वारा तथा हाल ही में राज्य के कृषि मंत्री कमल पटेल द्वारा भी इन्हें सम्मानित किया जा चुका है। निश्चित रूप से कृषक निहालसिंह कृषि को लाभ का धंधा बनाने वाले किसानों के लिये एक मिसाल बन चुके हैं।