कृषि कार्यों में भूमि की उर्वरकता के साथ-साथ कृषि पद्धति एवं सिंचाई का सर्वाधिक योगदान है। जिले की भौगोलिक संरचनाओं के फलस्वरूप दूरस्थ वनांचलों के असिंचित ़क्षेत्रों में किसान खेती के लिए वर्षा जल पर आश्रित हैं। जल संचयन की आवश्यकता और महत्व को देखते हुए जिला प्रशासन वर्षा जल संरक्षण के लिए मनरेगा के अंतर्गत विभिन्न संरचनाओं का निर्माण कर भू-जल स्तर बढ़ाने को प्राथमिकता दे रहा है। जल संरक्षण का सीधा लाभ किसानों को हो रहा है तथा कृषक वर्षा से इतर अन्य मौसमों में भी खेती कर पा रहे हैं। विकासखण्ड कुसमी के ग्राम भगवानपुर के रहने वाले फूलसाय पूर्ण रूप से वर्षा जल पर आश्रित रहकर ही खेती कर पाते थे। किन्तु मनरेगा के माध्यम से फूलसाय के निजी भूमि में 3 लाख के लागत से डबरी निर्माण कराया गया। जिसके पश्चात अब फूलसाय गर्मीयों के मौसम में भी अपने दो एकड़ भूमि को सिंचित कर पा रहे हैं और हरी साग-सब्जियों का उत्पादन कर अच्छी आमदनी प्राप्त कर रहे हैं। फूलसाय गर्मीयों के मौसम पानी के आभाव में पहले जहां बिल्कुल खेती नहीं करते थे, वहीं अब डबरी निर्माण के कारण सिंचाई उपलब्ध होने से खेती कर प्रतिमाह औसतन 15 से 20 हजार की कमाई करते हैं।
महात्मा गांधी नरेगा से जल संचयन के लिए डबरी का निर्माण कर जहां जल संचयन तथा असिंचित क्षेत्र को सिंचित किया जा रहा है, वहीं फूलसाय जैसे सामान्य वर्ग के कृषक परिवार के लिए यह संजीवनी का काम कर रहा है। इसके साथ ही फूलसाय के द्वारा डबरी में मछली पालन कर अतिरिक्त आय का स्त्रोत सृजित किया गया है। मनरेगा के वास्तविक व बहुआयामी उद्देश्यों को साकार कर रहा है तथा जल संचयन के माध्यम से भू-जल स्तर बढ़ाने की पहल भी सराहनीय है।