लॉकडाउन में बस्तर जिले के अधिकांश ग्रामीणों की यह कार्यशैली रही जिससे इनको मजदूरी के रूप में प्रतिदिन 190 रूपए के हिसाब से मजदूरी की राशि प्राप्त हो रही है। ये ग्रामीण वर्तमान में लॉकडाउन से अन्य राज्य कमाने गए मजदूरों की अपेक्षा ज्यादा खुश हैं क्योंकि उन्हें घर के नजदीक रोजगार का अवसर मिला। मनरेगा योजना का मूल उद्देश्य है कि ग्रामीण क्षेत्र के परिवारों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध हो। छत्तीसगढ़ राज्य में महात्मा गांधी नरेगा अंतर्गत 100 दिवस से बढ़ाकर 150 दिवस रोजगार प्रदाय किया जा रहा है। अतिरिक्त 50 दिवस पर होने वाला व्यय राज्य शासन द्वारा वहन किया जा रहा है। मनरेगा अंतर्गत बस्तर जिले में 31 हजार 397 मजदूर कार्य कर रहे हैं। जिले में एक लाख 964 जाबकार्ड धारक, दो लाख 24 हजार 222 पंजीकृत श्रमिक, एक लाख 20 हजार 402 सक्रिय श्रमिक हैं। जिला बस्तर में 2019-20 वित्तीय वर्ष में 61 करो? 2 लाख से अधिक रूपए मनरेगा के कार्यो में खर्च किया गया। वित्तीय वर्ष 2020-21 में 94 करोड़ रुपये व्यय का लक्ष्य हैै।
जिला मुख्यालय जगदलपुर के समीप सरगीपाल और नियानार के निवासी तुलाराम, तुलसीराम और कमला भोर 5 बजे से ÓÓजो नोनी मनरेगा था ने बुता करूक जावांÓÓ (चल नोनी मनरेगा काम करने) मनरेगा के तहत डबरी निर्माण कार्य में लग जाते हैं और लगभग 8 बजे तक अपने हिस्से के कार्य को खत्म कर वापस घर चले जाते हैं। जिले के ग्रामीणों को अन्य राज्यों या जिलों में काम की तलाश में जाने से रोकने में मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम के अंतर्गत बस्तर जिले में लॉकडाउन के दौरान व्यक्तिमूलक डबरी, कुंआ, भूमि सुधार, मेड़ बंधान, तालाब निर्माण, पशु शेड निर्माण, गौठान निर्माण, चारागाह निर्माण, शासकीय भूमि पर वृक्षारोपण कार्य, व्यक्तिमूलक फलदार वृक्षारोपण, आंगनबाड़ी भवन निर्माण, हितग्राही के लिए बकरी शेड, मुर्गी शेड, महिला समूह के माध्यम से नर्सरी में पौध निर्माण, शासकीय नर्सरी में पौध निर्माण, सिंचाई नाली निर्माण, गांव से पानी निकालने हेतु नाली निर्माण, बोल्डर डेम, चेक डेम, गेबियन निर्माण, महिला समूह के लिए वर्क शेड इत्यादि कार्य किया जा रहा है।