धान की फसल में मौसम की मार...तनाभेदक और पत्तीमोड़क कीटों
धान की फसल में मौसम की मार...तनाभेदक और पत्तीमोड़क कीटों

भारी वर्षा के बाद तेज धूप निकलने से उमस बढऩे लगता है। जिससे खेतों में कीट व्याधि का प्रकोप बढऩे की संभावना है। अत: कृषक भाई लगातार खेती एवं फसलों की निगरानी करते रहें। जिन क्षेत्रों में धान की हरूणा या जल्दी पकने वाली किस्में लगाई है, वे अभी पुष्पन की अवस्था में है। यदि 50 प्रतिशत पुष्पन हो चुका है, तो नत्रजन तृतीय किश्त का छिड़काव करें, पोटाश की सिफारिश मात्रा का 25 प्रतिशत भाग फूल निकलने की अवस्था पर टॉप ड्रेसिंग करने से धान के दानों की संख्या एवं वजन में वृद्धि होगी।

धान की फसल पर पीला तना छेदक कीट के वयस्क दिखाई देने पर तना छेदक के अंडा समूह को एकत्र कर नष्ट कर दे। साथ ही सूखी पत्ती को खींचकर निकाल दे। तनाछेदक की तितली 1 मोथ प्रति वर्ग मीटर में होने पर फिपरोनिल 5 एससी 1 लीटर प्रति दर से छिड़काव करें। धान की फसल पर कहीं-कहीं माहूं कीट का प्रकोप शुरू हो गया है, धान फसल की सतत निगरानी करें एवं कीटों की संख्या 10-15 प्रति पौधा हो जाने पर शुरूवात में ब्युपरोफेजिन 800 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें। 15 दिवस पश्चात् अगर कीट का प्रकोप बढ़ता दिखाई दे तो डाइनेटोफ्युरान 200 ग्राम या ट्राईफ्लामिजोपारम 500 मिमी प्रति हेक्टेयर की दर से आधोरीय भागों पर छिड़काव करें। सिंथेटिक पाईराथ्राईन वर्ग के कीटनाशक जैसे साइपरमेथिन व डेल्टामेथिरिन दवाओं का उपयोग माहू के प्रकोप को बढ़ा सकता है। अत: इनका उपयोग माहू नियंत्रण में ना करें। धान की फसल पर कहीं-कहीं पेनिकल माईट का प्रकोप भी देखने में आया है। जिसकी पहचान पोंचे व बदरंग दाने व तने पर भूरापन देखकर किया जा सकता है। इसके निदान हेतु एबेमेक्टिन 0.5 मिमी प्रति लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें।

धान की फसल पर झुलसा (ब्लास्ट) रोग के प्रारंभिक अवस्था में निचली पत्ती पर हल्के बैगनी रंग के धब्बे पड़ते है, जो धीरे-धीरे बढ़कर आंख-नॉव के सामान बीच में चौड़े एवं किनारों में सकरे हो जाते है। इन धब्बों के बीच कर रंग हल्के भूरे रंग का होता है। इसके नियंत्रण के टेबूकानालोल 750 मिली प्रति हेक्टेयर 500 लीटर पानी घोल बना कर छिड़काव करें। धान की फसल पर जीवाणुजनित झुलसा पत्ती का किनारे वाला ऊपरी भाग हल्का पीला सा हो जाता है तथा पूरी पती मटमैले पीले रंग की होकर पत्रक (शीथ) तक सूख जाती है। रोग के लक्षण दिखने पर यदि पानी उपलब्ध हो तो खेत से पानी निकाल कर 3-4 दिन तक खुला रखें तथा 25 किलो पोटाश की प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करे। स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट टेट्रा साइक्लिन संयोजक 300 ग्राम कॉपर आक्सीक्लोराइड 1.25 किग्रा प्रति हेक्टेयर 500 पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।

धान के खेत में पानी की सतह पर ऊपर पौधों के तनों पर यदि मटमैले रंग के बड़े-बड़े धब्बे दिख रहे हो तथा यह धब्बे बैंगनी रंग के किनारे से घिरे हो, जिसे शीथ ब्लाईट नामक रोग कहते है। यह रोग आने पर हेक्साकोनालोल फफूंदनाशक दवा (1 मिली/ली पानी)का छिड़काव रोगग्रस्त भागों पर करें। आवश्यकता पडऩे पर यह छिड़काव 12-15 दिन बाद दोहराया जा सकता है। सोयाबीन के फसलों पर पत्ती खाने वाले एवं गर्डल बीटल कीट दिखने पर प्रोफेनोफास 50 ईसी (1.25 ली/हेक्टेण्) या फ्लुबेंडामाईड 39.35 प्रतिशत एससी 150 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी से घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर दर से छिड़काव करें। साथ ही मौसम के पूर्वानुमान के अनुसार आने वाले दिनों में अधिकांश स्थानों में हल्के से मध्यम वर्षा होने की संभावना को देखते हुए जल निकास की उचित व्यवस्था करें।

लगातार हो रही बारिश से फसलों में कीट प्रकोप की आशंका…ऐसे करें उपाय

पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रही बारिश लगभग कम होने के साथ ही वातावरण में आद्र्रता या नमी बढ़ रही है। आने वाले पांच दिनों में आद्र्रता 92-97 प्रतिशत रहने की मौसम विभाग ने संभावना जताई है। बारिश के बाद मौसम में आद्र्रता बढऩे के कारण खरीफ फसलों खासकर धान के पौधों में कीट प्रकोप की संभावना बढ़ जाती है। फसलों को कीट प्रकोप से बचाने के लिए कृषि विभाग ने किसानों के लिए सलाहकारी निर्देश जारी किए हैं। जारी किए गए सलाह में धान की फसल को गंगई, झुलसा रोग, पीला तना छेदक एवं माहू कीट प्रकोप से बचाने के लिए समुचित उपाय करने किसानों को कहा गया है। धान में गंगई के प्रकोप आने पर फसल अगर कन्सा अवस्था पार कर चुका है तो किसी भी प्रकार की रासायनिक उपचार की आवश्यकता नहीं है। बढ़ती आद्र्रता धान फसल में झुलसा रोग के लिए अनुकुल होता है। इस रोग के प्रारंभिक अवस्था में पत्तियों में आंख के आकार के भूरे धब्बे बनते हैं जो बाद में बढ़कर पत्तियों को सूखा देती है। प्रकोप अधिक होने की स्थिति में खुले मौसम में ट्राईसाइक्लोजोल छह ग्राम प्रति दस लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव करने किसानों को सलाह दिया गया है। पीला तना छेदक के वयस्क कीट खेतों में दिखाई देने पर अण्ड समूह समेत पत्ती को अलग कर नष्ट करने तथा जहां पर डेडहार्ट बना है उसे खींचकर अलग कर देने की सलाह दी गई है जिससे अंदर मौजूद ईल्ली परजीवीकृत होकर नष्ट हो जाएगा। धान में तना छेदक कीट की निगरानी के लिए फिरोमेन ट्रेप 2-3 प्रति एकड़ का उपयोग करने एवं प्रकोप पाए जाने पर 8-10 फिरोमेन ट्रेप उपयोग करने की सलाह दी गई है।

किसानों को जारी किए गए सलाह में धान की फसल में माहू एवं तना छेदक कीटों के लिए खेत में फसल की सतत निगरानी करने को कहा गया है। जिन स्थानों पर तना छेदक की तितली एक वर्ग मीटर में एक से अधिक दिखाई दे रही हो वहां कार्बोफ्यूरान 33 किलोग्राम या फर्टेरा 10 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करने की सलाह दी गई है। बारिश के बाद खुला मौसम देखते हुए धान की फसल में निंदाई-गुड़ाई द्वारा निंदा नियंत्रण की सलाह भी दी गई है। शीघ्र पकने वाली धान की फसल पुष्पन अवस्था में है यदि उनमें 50 प्रतिशत पुष्पन हो चुका है तो नत्रजन की त्रिकीय किश्त का छिड़काव करने के लिए भी कहा गया है। विगत दिनों हुई भारी वर्षा को देखते हुए किसानों को धान खेत के मेड़ों को बांधकर रखने तथा आवश्यकता से अधिक पानी को खेत से बाहर निकालने की सलाह भी जारी की गई है।

धान की फसल में मौसम की मार…तनाभेदक और पत्तीमोड़क कीटों का प्रकोप…ऐसे करें बचाव…

विशेषज्ञों ने धान उत्पादक किसानों को कीट नियंत्रण की सलाह दी है। उन्होंने कहा है कि मौसम को देखते हुए धान की फसल में तना भेदक और पत्ति मोड़क के प्रकोप की आशंका है, अत: किसान भाईयों को सलाह दी जाती है कि खेत की सतत निगरानी करें तथा प्रकोप होने की स्थिति मे लेम्डासायहेलोथ्रीम 9.5 प्रतिशत थ्रमोमिथाकसाम 12.6 प्रतिशत 200 मिली लीटर प्रति हेक्टर छिड़काव करें।

धान की फसल पुष्पन अवस्था में है यदि 50 प्रतिशत पुष्पन हो चुका है तो किसानों को सलाह दी जाती है कि नाइट्रोजन की तीसरी खुराक का छिड़काव करें। पोटाश की अनुशंसित मात्रा का 25 प्रतिशत छिड़काव पुष्पन अवस्था में करने पर अनाज की मात्रा एवं  गुणवत्ता दोनों बढ़ जाती है। धान में आभासी कंडवा (हल्दी गांठ) रोग कि रोकथाम हेतु प्रोपीकोनोजोल 25 प्रतिशत श्वष्ट 1 मिली दवा प्रति लीटर पानी कि दर से 400-500 लीटर पानी के साथ प्रति हैक्टेयर छिड़काव करें।

सोयाबीन फसल में कटाई-गहाई का कार्य किया जा रहा है। सोयाबीन कटाई-गहाई उपरांत हवादार स्थान पर सुरक्षित भंडारण करें। जिससे कि बीज की गुणवत्ता बनी रहे।

कृषि वैज्ञानिकों ने दी सलाह

कृषि विभाग के अधिकारी एवं कृषि वैज्ञानिकों द्वारा भ्रमण करने के दौरान कीट का प्रकोप देखा गया है। जिले के किसानों को धान के फसलों को बीमारियों से बचाने के लिये जरूरी कीटनाशकों का उपयोग करने की सलाह दी जा रही है। कोरबा जिले के कुछ क्षेत्रों में भूरा माहो की भी समस्या देखने को मिल रही है। भूरा माहो धान की बहुत की नुकसान दायक कीट है जो धान के तने से रस चूस कर बहुत तेजी से नुकसान पहुंचाती है। वातावरण में उसम होने के कारण भूरा माहो का प्रकोप बढ़ जाता है। कीट प्रकोप की तीव्रता होने पर फसल झुलसा सा प्रतीत होता है तथा पूर्णत: सूख जाती है। भूरा माहो के नियंत्रण के लिये कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को बुप्रोफीजीन 25 प्रतिशत चार सौ मिलीलीटर प्रति एकड़ या फेनोबुकार्ब 400 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करने की सलाह दी गयी है।

उपसंचालक कृषि जनक देव शुक्ल ने बताया कि तना छेदक धान की फसलों में लगने वाली हानिकारक कीट है। यह कीट की इल्ली फसल को कंसा एवं गभोट तथा बाली की अवस्था में तने के अंदर घुस कर खाती है। कीट के कारण सूखा तना एवं सूखी बालियां बनती है तथा खींचने पर आसानी से बाहर निकल जाती है। तना छेदक से बचाव के लिये धान में प्रारंभिक अवस्था में क्लोरोपाइरीफास साइपरमेथ्रिन पांच प्रतिशत 20 मिली प्रति एकड़ या कोराजन 60 मिली प्रति एकड़ छिड़काव करने की सलाह दी गयी है। इसी प्रकार धान में नेकब्लास्ट का प्रकोप होने पर आवश्यक सावधानी बरतने तथा इसके नियंत्रण के लिये कारबेंडाजीम 150 ग्राम प्रति एकड़ छिड़काव करने की सलाह दी गयी है।

धान की फसल का मौसम… बाली निकलते समय इन कीटों से रखें खास ध्यान..

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धान की फसल का मौसम… बाली निकलते समय इन कीटों से रखें खास ध्यान..
बारिश के दिनों में धान की फसल ली जाती है। जिन किसानों के खेतों की बोआई पूरी हो गई और धान की फसल में यदि बाली निकलने लगी है तो उन्हें खास ध्यान रखने की जरूरत है, क्योंकि धान की फसलों में तना छेदक तथा पत्ती मोडक कीटो का प्रकोप ज्यादा देखा जाता है। इसके लिए किसान भाई धान के विभिन्न कीटों का नियंत्रण सुझाये गये तरीके अपनाकर कर सकते हैं।
 
1. तना छेदक
जिन कीटों से धान की फसल की हानि होती है उनमें तना छेदक, कीट प्रमुख है। कभी कभी धान के नर्सरी स्टेज में भी देखा जा सकता है परंतु इसका प्रकोप रोपाई के 15-20 दिन के बाद से धान की बाली निकलते समय तक अधिक दिखाई देता है। यह कीट तने के अंदर घुसकर तना के मुख्य भाग को खाता है जिससे धान के पौधे के मध्य की पत्तीया व तना सूख जाती है और उस तने को खींचने से आसानी से बाहर निकल जाती है। तना के निचले भाग को देखने से वहा एक छोटा सा पिन के आकार का छेद दिखाई देता है और उस भाग को चीरकर देखने से यह कीट देखा जा सकता है। तना छेदक की इल्लिया हल्के पीले रंग के होते है।

2. पत्ती मोडक कीट
इसके अलावा पत्ती मोडक कीट पत्ती को गोलाकार में मोड़कर पत्ती के हरा भाग को खुरचकर खाती है जिससे पत्तियो पर सफ़ेद धरियां बन जाती है। इसके रोकथाम के लिए कारटाप हाईड्रोक्लोराईड 4 प्रतिशत जी. 5 कि.ग्रा. प्रति एकड़ छिड़काव अथवा फिप्रोनिल 5 प्रतिशत एस.सी. 400 मि.ली. प्रति एकड़ के हिसाब से स्प्रे करना चाहिये।

3. माहू
ये फसल में गभोट तथा बाली अवस्था में आधिक नुकसान पहुंचाते हैं। सफेद, हरा तथा भूरा महू का फसल में प्रकोप होता है. ये तने तथा पत्तियों से रस चूसकर पौधे को कमजोर करते है, इसके आधिक प्रकोप से फसल झुलसी हुई दिखाई देता है. और पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।

4. गंधी बग मच्छर
वहीं गंधी बग मच्छर के आकृति के, मच्छर से बडे आकार के हरापन लिए भूरा रंग के होते है, ये कीट पत्तियों से एवं मुख्यतरू बलियो से रस चूसते है, इससे दाने पोंचे रह जाते हैं।

5. कटुआ
कटुआ (आर्मी वार्म) किट के इल्ली हल्के हरे से भूरे रंग के और शरीर के ऊपर सफेद हल्के पीले रंग के धरियां पाई जाती है। ये कीट नर्सरी अवस्था में पत्तियो को व बाली अवस्था में बलियों को काटकर खेत में गिरा देते है।


6. रोकथाम के उपाय
माहू, गंधी बग तथा कटुआ कीट के रोकथाम के लिए फिप्रोनिल 4 प्रतिशत $ थायोमिथेक्साम 4 प्रतिशत एस.सी. 30-40 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिये अथवा थायोमिथेक्साम 5 प्रतिशत डब्लु.जी. 5 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिये अथवा लैम्डा साईहेलोथ्रिन 5 प्रतिशत ई.सी. 7.5-10 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिये अथवा थायोमिथेक्साम 12.6 प्रतिशत $ लैम्डा साईहेलोथ्रिन 9.5 प्रतिषत जेड.सी. 6-8 मि.ली. प्रति 15 लीटर पानी के हिसाब से स्प्रे करना चाहिये।