दालों में अरहर, मूंग के साथ ही उड़द का महत्व काफी है। इसके दालों के साथ ही कई प्रकार के व्यंजन भी बनाए जाते हैं। इसलिए उड़द का व्यापारिक लाभ होने के साथ-साथ कई सारे और भी फायदे हैं। इसका सबसे बड़ा लाभ तो यह है कि यह कम समय में ही पककर तैयार हो जाता है। इसके साथ-साथ इसकी खेती दोनों ही मौसम यानी खरीफ एवं रबी दोनों में की जाती है। लेकिन ग्रीष्मकाल को इसकी खेती के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। उड़द के औषधीय गुण भी होते हैं। खासकर गठिया रोगियों के लिए यह काफी फायदेमंद होता है।
महत्ता
शाकाहारियों में प्रोटीन की पूर्ति के लिए दाल महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यूं तो सभी दालों में प्रोटीन की मात्रा काफी होती है, लेकिन उड़द में सबसे अधिक प्रोटीन पाया जाता है। इसलिए इसके नियमित सेवन से प्रोटीन की मात्रा शरीर में बराबर बनी रहती है।
जलवायु
उड़द की खेती के लिए एवं विकास के लिए उपयुक्त तापमान का होना अतिआवश्यक है। इसकी खेती के लिए गर्म मौसम जरूरी है, साथ ही मिट्टी नम होना चाहिए।  वहीं उड़द के विकास के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान होना चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहां वर्षा की मात्रा 700-900 मिमी हो, वहां इसे आसानी से उगाया जा सकता है। ऐसे वर्षा वाले क्षेत्रों में उड़द की फसल अच्छी होती है। लेकिन ध्यान रखें कि ज्यादा वर्षा इसके फूलों को नुकसान पहुंचा सकता है। खासकर फूल की अवस्था में। इसके साथ ही उड़द पकने के समय यदि वर्षा हो तो पर्याप्त व्यवस्था कर लेनी चाहिए, अन्यथा दानें खराब होने का खतरा बना रहता है।
मिट्टी
चूंकि उड़द को खरीफ एवं रबी दोनों ही प्रकार के मौसम में उगाया जा सकता है। इसलिए इसकी खेती के लिए कोई खास प्रकार की मिट्टी की आवश्यकता नहीं होता है, लेकिन हल्की रेतीली, दोमट की भूमि उड़द की खेती के लिए उपयुक्त है।
भूमि प्रबंधन
जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी फसल को बोने से पहले भूमि प्रबंधन आवश्यक होता है। इसलिए उड़द के लिए वर्षा होने के बाद कम से कम दो से तीन बार हल हलाकर खेतों को समतल कर लेना चाहिए। बारिश की शुरूआत में बुआई करने से इसके पौधों की बढ़ोतरी अच्छी होती है।
बुआई का तरीका
उड़द को कतारों में बोने के लिए थोड़ी सावधानी रखें। यानी इनके बीजों के बीच कम से कम 30 सेंटीमीटर की दूरी जरूरी है। वहीं यदि पौधों से पौधों की बुआई कर रहे हैं तो कम से कम 10 सेंटीमीटर की दूरी बनाए रखें। याद रखें, बीजों और पौधों को थोड़ी गहराई में बोएं।
उर्वरक
दलहनी फसलों मे गंधक युक्त उर्वरक जैसे सिंगल सुपर फास्फेट, अमोनियम सल्फेट, जिप्सम आदि का उपयोग करें। खाद को बुआई के समय कतारों मे बीज के ठीक नीचे डालना चाहिये।
सिंचाई एवं निंदाई
फसलों में फूल एवं दाने आने की अवस्था में खेत में नमी होना आवश्यक है। इसलिए उड़द में भी इस बात का खास ध्यान रखें। यदि खेत में नमी ना हो तो सिंचाई अवश्य करें। साथ किसी भी फसल को खरपतवार ज्यादा नुकसान पहुंचाते हैं। इसलिए उड़द की फसलों की समय-समय पर निंदाई-गुड़ाई करते रहने चाहिए।
कीटों से रक्षा
उड़द की फसलों को कई प्रकार के कीट लगने की आशंका होती है। खासकर इसमे क्ली वीटिक, पत्तीमोड़क कीट यानी इल्ली, सफेद मक्खी, पत्तीभेदक इल्लियां, सहित अन्य प्रकार के कीट लगते हैं, इसलिए इसकी रोकथाम आवश्यक है। समय-समय पर विशेषज्ञों से राय लेकर कीट प्रबंधन करते रहना चाहिए।
भंडारण
फसल कटाई के बाद उड़द के दालों का भंडारण आवश्यक है। दालों को कड़ी धूप में अच्छी तरह सुखा लेने से नमी 8-10 प्रतिशत रह जाती है। इसके लिए हमेशा नए बोरों को प्रयोग में लाना चाहिए। यदि यह संभव ना हो तो पुराने बोरों को कम से कम 20 मिनट तक उबलते पानी में डुबोकर सुखाकर प्रयोग करें। मैलाथियान घोल में 10 मिनट तक डुबोकर सुखाकर प्रयोग में लाएं। साथ ही बोरों को पर्याप्त दूरी में रखते हुए दालों का भंडारण लंबे समय किया जा सकता है। वहीं यदि इसे गोदामों में रखें तो ज्यादा अच्छा होगा।