आम, सेब, अंगूर जैसा ही एक लोकप्रिय फलों में से एक है चीकू। चीकू को सपोटा भी कहा जाता है। इसके फल बाहर से पके हुए और अंदर गूदे हल्के पीले रंग से लेकर भूरे रंग के भी होते है। अगर बनावट की बात करें तो चीकू नाशपती के समान ही होते हैं। चीकू शीतल, पौष्टिक और मीठा होता है। इसका उपयोग प्राय: खाने और जैम व शैली बनाने में किया जाता है। यह दक्षिणी मेक्सिको और मध्य अमेरिका के मूल निवासी है। भारत में इसको कर्नाटक, केरल, तामिलनाडु, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में उगाया जाता है। तो चलिए आज हम बात करते हैं चीकू की खेती और इसके व्यावसायिक लाभ के बारे में…
- जलवायु
चीकू की फसल गर्म जलवायु और 1.25 -2.50 मीटर वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में उगाया जा सकता है। यह पाले के प्रति अधिक संवेदनशील होती है इसीलिए शुरूआती समय में इसे पाले से बचाना बेहद जरूरी है।
- मिट्टी
चीकू के अच्छे उत्पादन के लिए इसकी खेती उपजाऊ बलुई दोमट मिट्टी में करें तो बेहतर होगा। याद रखें मिट्टी का पीएच मान 6 से 8 होना चाहिए। साथ ही जहां चीकू की फसल ली जा रही हो वहां जल निकासी की उचित व्यवस्था अवश्य होनी चाहिए।
- किस्में
वैसे तो चीकू की कई किस्में बाजार में उपलब्ध हैं। लेकिन काली पट्टी, भूरी पट्टी, पीली पट्टी, ढोला दीवानी, झूमकिया, बारामासी किस्में सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
- फायदे
चीकू में भरपूर मात्रा में विटामिन-बी, सी, ई, कैल्शियम, पोटैशियम, मैग्नीशियम, मैंगनीज, फाइबर और एंटीऑक्सीडेंट पाए जाते हैं। इसके इस्तेमाल से हड्डी मजबूत होती है। साथ ही ये कब्ज को दूर करने में, आँखों के लिए, तनाव कम करने में, सर्दी और खांसी के लिए फायदेमंद माना जाता है।
- पौधरोपण
चीकू का पौधरोपण कई तरीकों से किया जाता है। इसमें मुख्यत: प्रवर्धन बीज, वायु लेयरिंग, इनारचिंग और ग्राफ्टिंग आदि शामिल है। लेकिन यदि आप इसकी व्यवसायिक खेती करना चाहते हैं तो इनारचिंग के तरीके से इसकी खेती करें। इसके अलावा नए बीजों को वर्षा ऋतु में क्यारियों में बोएं। एक साल बाद जब पौधे बड़े हों तो इन्हें मिट्टी के साथ ही छोटे गमले, 10-15 सेंटीमीटर व्यास या पोलीथीन की थैलियों में लगा दें, जब यह पेंसिल जितने मोटे हो जाए हंै तो इन पर भेट कलम बांधने का का काम करें। इसको लगाने के लिए दिसंबर से जनवरी का महीना और अच्छा होता है।
- उर्वरक
चीकू के पौधों के अच्छे से बढ़़वार और उपज के लिए प्रतिवर्ष प्रति पौधा 50 किलो गोबर, 500 ग्राम फास्फोरस, 1000 ग्राम नाइट्रोजन और 500 ग्राम पोटाश आवश्यक होती है।
- सिंचाई
चीकू के पौधरोपण के तुरंत बाद सिंचाई करें। इसके बाद हर तीसरे या चौथे दिन नियमित सिंचाई करते रहें। लेकिन जब पौधे थोड़ा बढ़ें हो जाए तो गर्मियों में सप्ताहभर में और सर्दियों में 20 दिन के अंतराल में सिंचाई कर सकते हैं।
- रोग और कीट नियंत्रण
चीकू के पौधों में कई प्रकार के कीटों और रोग का प्रकोप देखा गया है। इसमें मुख्यत: फल में छेद, पत्तियों के गिरने और फल से गोंद के निकलने लगें तो इस पर क्यूनालफ़ोस (0.05 प्र.) या कार्बराईल (0.2 प्र.) का छिड्काव करे और उसके बाद फलों को हल्के से ढंक दें। पत्तियों के नीचे सफेद आटे का महीन चूर्ण दिखने में फेंनथोइड (0.05प्र.) या डाईमेक्रोन की 30 मिली लीटर मात्रा 16 लीटर पानी में मिला के छिड़के और अंडे और कीट इक_ा करके नष्ट कर दे।
- उपज
चीकू के फल पकने के बाद उसका रंग हरे से भूरे हो जाता है तब उसे तोड़ लेना चाहिए। प्रति हेक्टेयर 15 से 23 टन फल प्राप्त किये जा सकते हैं।