प्रदूषण मुक्त वातावरण बनाने, भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने सहित उत्पादन में वृद्वि के लिए जैविक खेती के जरिए किसानों को समृद्व बनाने की मध्यप्रदेश सरकार की कोशिशें रंग लाने लगी हैं। इसके लिए कृषि विभाग के अंतर्गत आत्मा परियेाजना का अमला किसानों को लगातार जागरूक भी कर रहा है। जिले के गरेगा गांव में आत्मा परियोजना ने दो क्लस्टर बनाकर 63 किसानों को अनुदान देकर जैविक खेती की शुरूआत कराई। जैविक खेती को लगातार अपनाए जाने से गरेरा के किसानी हलकों की आर्थिक समृद्वि के आसार बढ़ गए हैं। काश्तकारों की माली हालत सुधारने के लिए जैविक खेती को बढ़ावा देने से ही ग्राम गरेरा के कई किसान लखपति बन गए हैं।
उत्पादन बढ़ाने के लिए पारंपरिक जैविक खेती के लिए शुरू किए गए प्रयासों की बदौलत जिले के ग्राम गरेरा में केंचुआ खाद की खेती का नया चलन जोर पकडऩे लगा है। जो किसान पहले रासायनिक खेती से उचित लाभ नहीं कमा पाते थे और जिनकी लागत बढ़ रही थी, उन्हें यह फायदा देने का सौदा नजर आ रहा है। कृषि विभाग की आत्मा परियोजना किसानों को वैज्ञानिक ढंग से जैविक खेती करना सिखा रही है। नतीजे में ग्राम गरारे के करीब 83 किसानों के यहां केंचुआ खाद पैदा होने लगी है।
ये किसान करीब डेढ सौ हेक्टर रकबे में केंचुआ खाद की खेती कर रहे हैं। इससे किसान रासायनिक खाद पर करीब 11 लाख 25 हजार रूपये सालाना खर्च होने वाली राशि बचा रहे हैं और किसान तकरीबन 9 लाख 96 हजार रूपये की केंचुआ खाद बेचकर अलग से कमाई कर रहे हैं और कई किसान लखपति बन गए हैं। बाजार में केंचुआ खाद की मांग लगातार बढ़ती जा रही है। इसके अतिरिक्त कीट नियंत्रण के लिए डेढ़ सौ हेक्टर क्षेत्र में जैविक कीटनाशक का इस्तेमाल कर रासायनिक कीटनाशक पर खर्च होने वाली तकरीबन 6 लाख रूपये की राशि भी बचाई जा रही है।
केंचुआ से बनी जैविक खाद का इस्तेमाल करने से फसलों की पैदावार में तीन गुना से लेकर चार गुना तक बढ़ोत्तरी पाई गई है। इस खाद के उपयोग से भूमि की प्राकृतिक उर्वरता में भी बढ़ोत्तरी होती है और फसलों में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और भूमि की जलधारण क्षमता में इजाफा होता है, जिससे सिंचाई की जरूरत कम पड़ती है। गरेरा गांव में 110 वर्मी कम्पोस्ट पिट बन चुके हैं। खास बात यह है कि जैविक खेती में बहुत कम लागत आती है या यूं कहें कि लागत न के बारबर है। इसमें थोड़ा-सा समय और ध्यान देने पर ही अच्छे नतीजे मिल जाते हैं। सिर्फ खाद को बनाने के लिए केंचुओं के साथ गोबर, कचरा और खरपतवार की जरूरत होती है।
केंचुआ खाद एवं जैविक खेती से अच्छी खासी कमाई करने वाले गरेरा गांव के श्री जशरथ सिंह कहते हैं कि वे अपने खेतों में रासायनिक खाद पर खर्च होने वाली सालाना एक लाख रूपये की सूखी राशि बचा रहे हैं और फसल का उत्पादन बढ़ाकर फायदा ले रहे हैं। वह रासायनिक कीटनाशक पर खर्च होने वाले 50 हजार रूपये भी बचा रहे हैं। जैविक खेती के बाद उनकी वार्षिक आमदनी कई गुना बढ़ चुकी है।