करेले की खेती के लिए ज्यादा बारिश और ज्यादा ठंडी या गर्मी दोनों ही हितकर नहीं होती। इसलिए इसकी खेती मैदानी भागों में प्राय: फरवरी और मार्च के बीच की जाती है तो पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जून तक।

जलवायु:- करेले की फसल कद्दूवर्गीय फसलों की अपेक्षा कम तापमान वाली जलवायु में उगाया जा सकता है, पर अधिक वर्षा हुई तो फसल खराब होने का डर बना रहता है। इसलिए इसकी खेती मैदानी भागों में प्राय: 15 फरवरी से 15 मार्च के बीच की जाती है तो पहाड़ी क्षेत्रों में अप्रैल से जून तक।

मिट्टी:- करेले की खेती के लिए दोमट व बलुई मिट्टी युक्त भूमि ज्यादा अच्छी होती है।

तैयारी:- खेत की तैयारी करते समय खाद डालने के हफ्तेभर के बाद मिट्टी को हल से जुताई करना चाहिए। इसके उपरान्त एक सप्ताह तक खेत को खुला छोड़ दें। इसके बाद फिर से हल चलाकर इसकी मिट्टी को भुरभुरा बना लें। अब 2 या 3 फीट के नियमित अंतराल के बाद गहरा गड्ढे में खाद मिलाकर मिट्टी से ढंक दें। करीब हफ्तेभर बाद गड्ढों के बीचों-बीच 3 से 4 बीज 2 से 3 सेंटीमीटर गहराई में बोते जाएं।

सिंचाई:- करेले के पौधों की सिंचाई ठंडे मौसम अथवा शाम के समय करना चाहिए। तोड़ाई:- करेले की फसल 90 दिन पश्चात फल तोडऩे लायक हो जाते हैं। फल तुड़ाई का कार्य सप्ताह में 2 या 3 बार करना चाहिए।

कीट प्रकोप:-  करेले में कीट प्रकोपों की आशंका बनी रहती है, तब जब फल निकलने को होते हैं। इसलिए इसका खास ध्यान रखना पड़ता है। इसके साथ ही साथ जैसे-जैसे पौधों में बढ़ोतरी होती है खरपतवार या दूसरी किस्म के घास इसके साथ-साथ उग आते हैं, अत: इनका समय-समय पर निंदाई जरूरी है।

किस्में:- अच्छी पैदावार के लिए पूसा 2 मौसमी, कोयम्बूर लौंग, अर्का हरित, कल्याण पुर बारह मासी, हिसार सेलेक्शन, सी 16 आदि करेले की सर्वोत्तम किस्में हैं।