इलायची से सभी परिचिति हैं। इलायची का उपयोग मुख शुद्धि तथा मसाले के रूप में व्यापक तौर पर किया जाता है। वहीं इसकी खुशबू के कारण मिठाईयों और अन्य मीठे व्यंजनों में इसका उपयोग होता है। हमारा देश इसके उत्पादन में सबसे आगे हैं। खासकर, केरल, कर्नाटक और तमिलनाडु में इसका सबसे ज्यादा उत्पादन होता है। इलायची मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है- छोटी और बड़ी इलायची। इसके व्यापारिक महत्व की बात करें तो इलायची के पेड़ से तीन से चार साल बाद पैदावार शुरू हो जाता है और एक हेक्टेयर भूमि में आपको लगभग 150 किलो के आसपास सूखी इलायची मिल जाएगी। इसका बाजार मूल्य काफी ऊंचा है। अनुमानत: एक किलो इलायची 2000 से 3000 रुपए प्रति किलो की दर से मिलती है। तो चलिए आज चर्चा करते हैं इलायची की खेती के बारे में…
मिट्टी
इलायची की खेती के लिए लाल और दोमट मिट्टी उपयुक्त मानी गई है। और इसकी खेती उष्णकटिबंधीय जंगलों में, जहाँ छाया तथा समुद्री हवा में नमी हो अच्छी तरह से होती है। इसकी खेती के लिए लाल व दोमट मिट्टी सबसे सर्वोत्तम है।
जलवायु
इलायची की खेती के लिए जलवायु का खास ध्यान रखना पड़ता है। खासकर, इसकी खेती के लिए कम से कम 1500 मिमी बारिश और ऐसा छायादार स्थान जहां हवा में नमी पर्याप्त मात्रा में हो, इसकी खेती की जा सकती है। गर्मी और सर्दी के मौसम में इसके तापमान का खास ध्यान रखना पड़ता है। सामान्य सर्दी के मौसम में इसे 10 से 12 डिग्री तो गर्मियों में तापमान 35 से ज्यादा नहीं होना चाहिए।
पौध रोपण
इलायची के पौधों को आमतौर पर नर्सरी में तैयार किया जाता है। इसके बीजों को 10 सेंटीमीटर के अंतराल में लगाना ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन बीजों को लगाने से पहले उपचारित अवश्य कर लें। एक हेक्टेयर में यदि आप इलायची की खेती करना चाहते हैं तो एक से डेढ़ किलो बीज ही पर्याप्त हैं। इसके साथ ही क्यारियों में पर्याप्त मात्रा में खाद डालकर तैयार कर लें। बीज लगाने के बाद सिंचाई कर लें। इसके बाद पुलाव या सुखी घास से ढक दें। पौधे जब तैयार हो जाएं तो इसे एक से दो फीट की निश्चित दूरी पर लगाते जाएं।
सिंचाई
पौधे लगाने के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर लें। यदि मौसम बारिश का हो तो इसमें ज्यादा सिंचाई की जरूरत नहीं होती है, लेकिन गर्मी के मौसम में हफ्ते में दो बार और सर्दियों में महीने में कम से कम तीन बार सिंचाई अवश्य करना चाहिए।
उर्वरक
पौधों को लगाने के लिए खोदे गए गड्ढों में प्रत्येक पौधे के हिसाब से 10 किलो गोबर खाद और एक किलो वर्मी कम्पोस्ट खाद डालें। इसके अलावा नीम की खली और मुर्गी की खाद दो से तीन साल तक अवश्य देना चाहिए।
इलायची में लगने वाले रोग
वैसे तो इलायची में रोग कम ही लगते हैं। इसके चलते इसकी पैदावार में नुकसान की संभावना कम ही होती है। लेकिन फिर भी कुछ रोग इसके पौधों में देखे गए हैं। इसलिए इसका उपचार कर लेना चाहिए। फंगल रोग- इलायची के पौधों में यदि झुरमुट और फंगल रोग लग जाए तो यह पौधों को नष्ट कर ेदेता है। पत्तियां सिकुड़ जाती हैं और पैदावार को काफी नुकसान पहुंच सकता है। इसलिए बीज को ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर लगाएं। साथ ही यदि पौधों में इस तरह लक्षण दिख रहे हों तो पौधों को उखाड़ कर अलग कर देना चाहिए।
सफेद मक्खी- इलायची के पौधों में पत्तियों के नीचे सफेद रंग की मक्खियां यदि दिखाई दें तो सतर्क हो जाएं। क्योंकि ये पौधों पर हमला कर इसकी बढ़वार को रोक देता है। ये पत्तियों को रस चूसकर नुकसान पहुंचाती है। इसकी रोकथाम के लिए कास्टिक सोडा और नीम के पानी को मिलाकर छिड़काव कर सकते हैं।
कटाई
बीज की कटाई पूरी तरह से पकने के पहले ही कर लें। लेकिन ध्यान रखें कटाई पकने के कुछ समय पहले ही करें। कटाई के बाद बीज की सफाई की जाती है और इसे कम से कम 12 डिग्री तापमान पर अच्छी तरह सुखा कर रखा जाता है। इसकी बाजार में अच्छी कीमत मिलती है। एक किलो इलायची की कीमत लगभग 2000 से 3000 तक मिल जाती है।