अनुपयोगी कोयला खदानों को उपयोगी बनाने के लिए मत्स्योद्योग विभाग द्वारा महिला स्वसहायता समूहों को मछली पालन व्यवसाय से जोडऩे के प्रयास कारगर साबित हो रहे हैं। इन खदानों के आसपास रहने वाले गरीब परिवारों को मत्स्य पालन की आजीविका से जोड़कर स्वावलम्बी बनाया जा रहा है।
मछली पालन से आजीविका का तानाबाना बुनने वाले स्वसहायता समूहों में जोहिला डैम में आदिवासी मत्स्योद्योग सहकारी समिति पोंड़की, डोला रामनगर खदान में ज्योति स्वसहायता समूह, डोला राजनगर, कुशला बदरा खदान में आदिवासी मत्स्योद्योग सहकारी समिति जमुना बस्ती तथा छोहरी खदान छोहरी में पावनी स्वसहायता समूह आकार ले रहे हैं। इन स्थानों पर केज कल्चर के माध्यम से पंगेशियस मछली का पालन किया जा रहा है। इनसे 161 मे. टन मछलियों का उत्पादन होने का अनुमान लगाया गया है।
मछलियों की कमाई इस व्यवसाय से जुड़े गरीब परिवारों की माली हालत बदलने में कारगर साबित हो रही है। इस मछली पालन व्यवसाय से बड़ी संख्या में महिलाएं जुड़ी हैं, जो परिवार की आय बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रही हैं। जिला प्रशासन ने 12 अनुपयोगी खदानों को चिन्हित किया है, जिनमें केज कल्चर के माध्यम से मछली पालन किया जाएगा। ज्योति स्वसहायता समूह की अध्यक्ष रेखा साव एवं सचिव आशा देवी का कहना है कि मछली पालन व्यवसाय से उनके घर के हालात सुधरे हैं और आजीविका अच्छी चल रही है।
सहायक संचालक मत्स्योद्योग शिवेन्द्र सिंह परिहार ने बताया कि कोयला खदानों को कोयला निकासी के पश्चात आमतौर पर खाली खदानों को खुला छोड़ दिया जाता है। अनुपयोगी एवं अत्यधिक गहरी होने के कारण इनका किसी भी कार्य में उपयोग नहीं हो पा रहा था। लगातार वर्षा एवं सतही जल के इन खदानों में भराव के कारण एक जल क्षेत्र जैसी संरचना निर्मित हो गई थी। लिहाजा इन अनुपयोगी खदानों में मछली पालन की योजना बनाई गई। इन खदानों में मत्स्य पालन हेतु भारत सरकार की नील क्रांति योजनांतर्गत केज इकाई स्थापित करने की ब्यूह रचना की गई थी। फलस्वरूप खदानों के आसपास निवासरत महिला समूहों एवं व्यक्तियों की सहभागिता से यह योजना परवान चढ़ रही है।